Mahashivratri: शिव भक्तो का खास दिन

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mahashivratri : शिव भक्तो का ख़ास दिन कहलाया जाता है महाशिवरात्रि । वैसे तो हम सब सोमवार को शिव जी की उपासना करते ही है और वो भी विधि विधान के साथ । सोमवार चंद्र से जुड़ा हुआ है और चन्द्रमा शिव जी के माथे पर विराजमान है तो चंद्र और शिव जी का विशेष रिलेशन हुआ ।

हर माह की जो कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी  जो आती  है उस दिन को शिवरात्रि बोलते है और फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हम महाशिवरात्रि के रूप में मनाते है । इसे बहुत ही आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है ।

ज्योतिशो का यह कहना है की इस दिन चंद्र सूर्य के नज़दीक होता है इस मिलान को योग मिलान कहा जाता है और चतुर्दशी मनाया जाता है ।

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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? या महाशिवरात्रि का इतिहास क्या है ?

ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवन शिव और पार्वती माँ की शादी हुई थी इसीलिए बहुत ही हर्षोल्लास के साथ महाशिवरात्रि मनाई जाती है और रात में पूजा विधि विधान से करके शिव जी की बारात निकली जाती है । एक तरह से महाशिवरात्रि का ये दिन भगवान शिव जी और माता पार्वती की शादी की सालगिरह के रूप में मनाई जाती है । महाशिवरात्रि के दिन श्रद्धालु बड़े ही दिल से व्रत उपवास रखते है और ये भी माना जाता है की इस दिन जो व्यक्ति शिव जी और पार्वती जी की दिल से पूजा करता है उसकी मनोकामना भी पूरी होती है । क्यों की महाशिवरात्रि को की गयी पूजा अर्चना से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न  होते है और आपकी मनोकामना को जल्दी ही पूरा करते है ।

महाशिवरात्रि की कथा :

एक शिकारी था जिसका नाम चित्रभानु था वह शिकार करके अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था । एक बार उसने साहूकार से ऋण लिया और उसे चूका नहीं पा रहा था तो साहूकार ने उस शिकारी को बंधक बना लिया । शिव रात्रि  की कथा भी सुनी,,,, चूँकि शिवरात्रि का दिन था  .  शिकारी ने वही पर उसने साहूकार से प्रार्थना करके एक दिन और माँगा दिनभर बंधक रहकर वो उसी रात जंगल में शिकार करने चला गया ताकि जिसका भी वह शिकार करेगा उसको बेच कर वह साहूकार का ऋण चूका सके , उस दिन शिवरात्रि थी और वो शिकारी जंगल में ही रात हो जाने की वजह से पेड़ पर चढ़ गया जो की नदी किनारे था । उस पेड़ के नीचे शिव लिंग बना हुआ था और वो पेड़ बिलपत्र का था । रातबाहर वो शिकारी पेड़ से बिलपत्र तोड़ता रहता है और नीचे फेंकता रहता है इस तरह से वो बिलपत्र अनजाने में ही सही परन्तु  शिव लिंग पर चढ़ रहे थे ।

रात्रि में वहां एक गर्भवती हिरणी नदी किनारे पानी पीने आती है  और शिकारी तैयार हो जाता है उसका शिकार करने तभी  हिरणी बोलती है मैं गर्भवती हु मेरा प्रसव हो जाने दो मैं आती हु फिर तुम मेरा शिकार कर लेना और शिकार रुक जाता है और हिरणी चली जाती है इस तरह से धनुष बाण की प्रत्यंचा चढ़ने और उतरने में जो अनायास ही पेड़ से बिल पत्र गिर गए उससे शिव जी की प्रथम प्रहार की पूजा संपन्न हो गयी ।

थोड़ी  देर बाद  ही दूसरी हिरणी नाचती मटकती खुश होते हुए पानी पीने आयी तो शिकारी ने सोचा इसका शिकार करता हु तब तक वो हिरणी बोली मैं अभी ऋतू  से निवृत होक आयी हु  कामतुर विरहणी  हु मैं अपने प्रिय को ढूंढ रही हु मुझे उनके मिलकर आती हु तुम फ़ी मेरा शिकार कर लेना शिकारी का माथा ठनक गया और वो गुस्से में फिर से धनुष की प्रत्यंचा चढाने लगा इस तरह से फिर से बिल पत्र टूट कर नीचे गिरे और दूसरे प्रहार की पूजा भी संपन्न हो गयी ।

थोड़ी देर में वहां से एक हिरणी अपने बाचो के साथ गुजर रही थी इस बार शिकारी ने उसका शिकार करने का मन बनाया तो हिरणी बोली मैं इन बच्चो को इनके पिता के पास छोड़ देती हु फिर तुम मुझे मरना । फिर से शिकारी का माथा ठनका और शिकारी को दया भी आगयी तो उसने जाने दिया परन्तु पेड़ से उसके हाथो से वो बिल्पत्र नीचे फेंक रहा था इस तरह से शिवरात्रि का जागरण चल रहा था ,,, सुबह होने वाली थी तभी एक हिरन भूक प्यास से व्याकुल होक उधर से गाजर रहा था तो शिकारी तैयार हो गया शिकार के लिए परन्तु हिरन ने कहा तुमने अगर मेरे से पहले आयी हुई तीनो हिसनियो को छोड़ा है तो मुझ पर भी दया करके छोड़ दो । क्युकी वो तीनो ही पेरी पत्निया और बाचे है अगर तुमने उनको मार दिया  हो तो मुझे भी मार दो मैं उनके वियोग में जी नहीं पाउँगा ।

शिकारी ने अपनी पूरी रात की घटना क्रम उस हिरन को सुनाया तब हिरन ने बोलै मैं अपनी पत्नियों और बाचो से मिलना चाहता हु फिर हम सपरिवार तुम्हारे सामने आयंगे तुम मेरे पुरे परिवार का ही शिकार कर लेना  इस तरह शिकारी ने उसे भी जाने दिया । शिकारी के द्वारा अनजाने में ही सही पर शिवरात्रि की पूजा पूरी विधि विधान और कोमल मन के साथ हो गयी थी ।

थोड़ी देर बाद वो हिरन अपने पुरे परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित होता है किन्तु पशुओ में इतनी सत्यता , सात्विकता और प्रेम भावना देखकर शिकारी को बहुत आत्मग्लानि हुई उसने हिरन के पुरे परिवार को छोड़ दिया और जीवन दान दे दिया ।

अनजाने में ही सही परन्तु इस तरह से शिकारी द्वारा पूजा करने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई जब उसे यमदूत लेने आये तो उसको सीधे शिवलोक ले जाया गया । शिवजी की ही कृपा से वोअगले जन्म में राजा चित्रभानु बने और अपने पुराने जन्म को याद करते हुए महाशिवरात्रि का महत्व जानकर अगले जन्म में भी पालन किया ।

निष्कर्ष : महाशिवरात्रि पर जो भी भक्त शिवजी और पार्वती माता की सच्चे मन से पूजा करते है उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है और उन्हें जरूर मोक्ष की प्राप्ति भी होती है अगर मन सच्चा है । शिव और पार्वती केविवाह के उपलक्ष में महाशिवरात्रि बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है तथा इनकी विधि विधान से पूजा की जाती है । इस  तरह जो कुवांरे लोग होते है महाशिवरात्रि के दिन दिल से उपवास रखते है और पूजा पाठ करते है तो ऐसा माना जाता है की उनको मनवांछित जीवन साथी मिलता है ।

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