Durga Ashtami: चैत्र नवरात्री की दुर्गा -अष्टमी कब है ? जाने सहीं डेट , कन्या पूजन का मुर्हुत , और इनकी पूजा करने की विधि –
नवरात्री में कन्या पूजन का विशेष महत्व है । कन्या पूजन के बिना नवरात्री व्रत भी अधूरा माना जाता है । नवरात्री में माता रानी के नो रूपों के अलग अलग स्वरूपों की पूजा और आराधना की जाती है । और इस पूजा का और आराधना का बड़ा ही विशेष महत्त्व होता है नवरात्री के दिनों में । इस चित्र नवरात्रि में दुर्गा अष्टमी 16 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी । पूरी नवरात्री में दुर्गा अष्टमी को एक विशेष दिन माना जाता है ।
नवरात्री में कन्या पूजन क्यों किया जाता है ?
इसका जवाब जानने के लिए हमें एक पौराणिक कथा को जानना होगा । पौराणिक शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी के कहने पर इन्द्र देव ने कन्याओ का पूजन करना शुरू किया था . दरसल ऐसा माना जाता है की इंद्र देव माता दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते थे . इसीलिए इन्द्र देव ब्रह्मा जी के पास पहुचें और उनको पूछा की माता रानी को कैसे प्रसन्न किया जाये तो ब्रह्मा जी ने ही उनको बताया की अगर माता रानी को प्रसन्न करना है तो आपको कन्याओ की पूजा करनी चाहिए और उनको भोजन कराना चाहिए तभी से इंद्र देव ने ब्रह्मा जी की बात मानकर माता का वसिद्धि विधान पूजा करके कुंवारी कन्याओ की पूजा और उनको भोजन करवाया । माँ दुर्गा इस प्रकार इन्द्र देव से प्रसन्न हुई और उन्होंने इन्द्र देव को आशीर्वाद दिया । ऐसा माना जाता है की तभी से कन्या पूजन शुरू हुआ है और ऐसा माना जाता है की माता रानी को खुश करना है तो कुंवारी कन्याओ की पूजा और भोजन कराया जाये इससे माता रानी प्रसन्न होती है ।
नवरात्री में कन्या पूजन का महत्त्व :
नवरात्री में माता दुर्गा के नो रूपों की पूजा होती है इसमें नो कुंवारी कन्याओ को बुलाया जाता है और उनका विधि विधान पूजा करके उनको भोजन करवाया जाता है जो भक्त विधि विधान से माँ की आराधना करता है वो नवरात्री के आठवें या नौवें दिन कुवारी कन्याओ का विधि विधान पूजा करता है और माँ को प्रसन्न कर माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करते है । इस तरह कुंवारी कन्याओ का पूजन करने से माँ दुर्गा का आशीर्वाद आप पर बना रहता है और आपके घर में सुख समृद्धि हमेशा रहती है । अब हम जानेगे की कन्याओ का पूजा न कैसे किया जाये ?
नवरात्री में कन्या पूजन की विधि :
जब भी आप कन्याओ को बुला रहे है तो ध्यान दे कुंवारी कन्या जो 10 साल से ऊपर न हो और ऐसी नो कन्याओ के साथ एक भैरव मतलब एक छोटे बालक को भी बुलाया जाये जो की बाबा भैरव का रूप होते है । सबसे पहले कन्याओ के पैरो को धोये और उन्हें एक साफ़ सुथरे स्थान पर बिठाये फिर उनको भोजन कराये याद रहे भोजन का भोग पहले माता रानी को लगाए उसके बाद कन्याओ को भोजन करना चाहिए । पहले कन्याओ की पूजा कर उन्हें भोजन में हलवा , पूरी और चने देने चाहिए , उनको भोजन कराने के बाद सभी कन्याओ को कुछ गिफ्ट जरूर दे । याद रहे जो भी कन्या आपके घर भोजन करने आयी है वो आपके घर आकर ख़ुशी महसूस करे और मुस्कुराते हुए वापस जाये ।
नवरात्री में कन्या पूजन का मुर्हुत :
नवरात्री में अष्टमी और नवमी दोनों ही दिनों को कन्या पूजन किया जाता है बिना कन्या पूजन के माँ दुर्गा की आराधना अपूर्ण मणि जाती है । इस दिन जो भी उपवास रखता है पहले छोटी कन्याओ कप भोजन करवाकर ही भोजन ग्रहण करता है । पंचांग के अनुसार अष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुर्हुत सुबह 07.51 से लेकर 10.41 मिनट तक है दोपहर में 01.30 बजे से लेकर 02.55 मिनट तक रखा गया है । महानवमी के दिन पूजा का शुभ मुर्हुत सुबह 6.27 से लेकर 7.51 मिनट तक रखा गया है । दोपहर को 1,30 से 2.55 मिनट तक रखा गया है ।
इस प्रकार नवरात्री के नो दिनों की बहार हर घर में बानी रहती है जो नवरात्री के उपवास रखते है और इस प्रकार भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए कुंवारी कन्याओ का पूजन कर उन्हें अच्छे से भोजन करा कर विदा करते है ।